गुरुवार, 16 मार्च 2017

पटकथा लेखन का तकनीकी तरीका







पटकथा के लिए चित्र परिणाम


पटकथा लेखन करना मेहनत, अभ्यास, कौशल और सृजनात्मक कार्य है। कोई लेखक जैसे-जैसे फिल्मी दुनिया के साथ जुड़ता है वैसे-वैसे वह पटकथा लेखन की सारी बातें सीख लेता है। पटकथा लेखक को उसकी बारिकियां अगर पता भी न हो तो कम-से-कम उसे ऐसा लेखन करने की रुचि होनी चाहिए। निर्माता-निर्देशक लेखक से अच्छी पटकथा लिखवा लेते हैं, कमियों को दुरुस्त करने की सलाह देते हैं। हिंदी की साहित्यकार मन्नू भंड़ारी ने कई टी. वी. धारावाहिकों के साथ फिल्मों हेतु बासु चटर्जी जी के लिए पटकथा लेखन किया। वे लिखती हैं कि "इस विधा के सैद्धांतिक पक्ष की ए बी सी डी जाने बिना ही मैंने अपना यह काम किया (कभी जरूरत हुई तो आगे भी इसी तरह करूंगी) और इसलिए हो सकता है कि मेरी ये पटकथाएं इसके तकनीकी और सैद्धांतिक पक्ष पर खरी ही न उतरें। फिर मैंने कभी यह सोचा भी नहीं था कि मुझे इन पटकथाओं को प्रकाशित भी करना होगा।... मैंने तो इन्हें सिर्फ बासुदा के लिए लिखा था और उनकी जरूरत (जिसे मैं जानती थी) के हिसाब से लिखा था, सैद्धांतिक पक्ष के अनुरूप नहीं... (जिसे मैं जानती ही नहीं थी)।" (कथा-पटकथा, पृ. 11) खैर मन्नू भंड़ारी पटकथा लिखना नहीं जानती थी परंतु उनमें पहले से मौजूद प्रतिभा, रुचि और बासु चटर्जी का मार्गदर्शन सफल पटकथा लेखन करवा सका है। पटकथा लेखन के दो तकनीकी तरीकें जो आमतौर पर फिल्मी दुनिया में अपनाए जाते हैं। एक है घटना-दर-घटना, दृश्य-दर-दृश्य, पेज-दर-पेज लिखते जाना। इसे लेखन की गतिशील (रनिंग) शैली या क्रमबद्ध तरीका कहा जाता है, और दूसरा तरीका है स्थापित लेखन तरीका। पूरा आलेख पढने के लिए 'रचनाकार' में प्रकाशित इस आलेख लिंक को क्लिक करें - http://www.rachanakar.org/2017/03/blog-post_93.html

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